August 15, 2011

पुष्प की अभिलाषा

माखनलाल चतुर्वेदी

चाह नहीं मैं सुर बाला के
गहनों में गूंथा जाऊं,
चाह नहीं, प्रेमी माला में
बिंध प्यारी को ललचाऊं,

चाह नहीं, सम्राटों के
शव पर हे हरि डाला जाऊं,

चाह नहीं, देवों के सिर पर
चढूँ भाग्य पर इठलाऊं,

मुझे तोड़ लेना वनमाली!
उस पथ पर देना तुम फ़ेंक,
मातृभूमि पर शीश चढाने
जिस पथ जाएँ वीर अनेक.

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