October 19, 2012

कलम या कि तलवार

Ramdhari Singh Dinkar
रामधारी सिंह "दिनकर "
बेगुसराय, बिहार
२३ सितम्बर, १९०८ - २४ अप्रैल १९७४,
दो में से क्या तुम्हें चाहिए, कलम या कि तलवार
मन में ऊँचे भाव कि तन में शक्ति विजय अपार
बंद कक्ष में बैठ लिखोगे ऊँचे  मीठे गान
या तलवार पकड़ जीतोगे बाहर जा मैदान
कलम देश की बड़ी शक्ति है भाव जगाने वाली
मन ही नहीं विचारों में भी आग लगाने वाली
पैदा करती कलम विचारों के जलते अंगारे
और प्रज्वलित प्राण देश क्या कभी मरेगा मारे

October 06, 2012

जीवन नही मरा करता है


गोपाल दास नीरज
जन्म: ४ जनवरी, १९२४, इटावा, उत्तर प्रदेश
 
छिप छिप अश्रु बहाने वालो
मोती व्यर्थ लुटाने वालो
कुछ सपनो के मर जाने से
जीवन नही मरा करता है




सपना क्या है, नयन सेज पर
सोया हुआ आंख का पानी
और टूटना है उसका ज्यों
जागे कच्ची नींद जवानी

गीली उमर बनाने वालो
डूबे बिना नहाने वालो
कुछ पानी के बह जाने से
सावन नही मरा करता है



माला बिखर गई तो क्या
खुद ही हल हो गई समस्या
आँसू ग़र नीलाम हुए तो
समझो पूरी हुई तपस्या

रूठे दिवस मनाने वालो
फटी कमीज़ सिलाने वालो
कुछ दीपों के बुझ जाने से
आंगन नही मरा करता है



खोता कुछ भी नहीं यहाँ पर
के़वल जिल्द बदलती पोथी
जैसे रात उतार चांदनी
पहने सुबह धूप की धोती

वस्त्र बदलकर आने वालो
चाल बदलकर जाने वालो
चंद खिलौनों के खोने से
बचपन नही मरा करता है



लाखों बार गगरियां फूटीं
शि़क़न न आई पर पनघट पर
लाखों बार कश्तियां डूबीं
चहल पहल वोही है तट पर

तम की उम्र बढाने वालो
लौ की आयु घटाने वालो
लाख करे पतझर कोशिश पर
उपवन नही मरा करता है



लूट लिया माली ने उपवन
लुटी न लेकिन गंध फूल की
तूफानों तक ने छेड़ा पर
खिड़की बंद न हुई धूल की

नफरत गले लगाने वालो
सब पर धूल उडाने वालो
कुछ मुखडों की नाराज़ी से
दर्पन नही मरा करता है

August 11, 2012

मैया मोरी, मैं नही माखन खायो

मैया मोरी, मैं नही माखन खायो

भोर भयो गैयन के पाछे, मधुवन मोहि पठायो ।
चार पहर वंशीवट भटक्यो, सांझ परे घर आयो ॥
॥ मैया मोरी .......... १ ॥

मैं बालक बहियन को छोटो, छींको किहि विधि पायो .
ग्वाल-बाल सब बैर परे हैं, बरबस मुख लपटायो ..
॥ मैया मोरी .......... २ ॥

तू जननी मन की अति भोली, इनके कहे पतियायो .
यह ले अपनी लकुटि कम्बलिया, तुने बहुतहि नाच नचायो .
जिय तेते कछु भेद उपजिहै , जानि परायो जायो ..
"सूरदास" तब हँसी यशोदा, लै उर-कंठ लगायो ..
॥ मैया मोरी ..........

April 04, 2012

बढ़े चलो

द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी
आगरा, उत्तर प्रदेश

 १ दिसम्बर १९१६ - २९ अगस्त १९९८

वीर तुम बढ़े चलो
धीर तुम बढ़े चलो
साथ में ध्वजा रहे
बाल दल सजा रहे
ध्वज कभी झुके नहीं
दल कभी रुके नहीं
सामने पहाड़ हो
सिंह की दहाड़ हो
तुम निडर,हटो नहीं
तुम निडर,डटो वहीं
वीर तुम बढ़े चलो
धीर तुम बढ़े चलो
प्रात हो कि रात हो
संग हो न साथ हो
सूर्य से बढ़े चलो
चन्द्र से बढ़े चलो
वीर तुम बढ़े चलो
धीर तुम बढ़े चलो

आग जलनी चाहिए

दुष्यन्त कुमार
जन्म: सितम्बर 27, 1931, बिजनौर, उत्तर प्रदेश 
 
हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए
आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी,
शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए
हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर, हर गाँव में
हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए
सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं,
सारी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए
मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही
हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए।






March 31, 2012

शक्ति और क्षमा

रामधारी सिंह "दिनकर"
जन्म: 23 सितंबर 1908, सिमरिया, बेगूसराय, बिहार 

क्षमा, दया, तप, त्याग, मनोबल
सबका लिया सहारा
पर नर व्याघ्र सुयोधन तुमसे
कहो, कहाँ कब हारा ?

क्षमाशील हो रिपु-समक्ष
तुम हुये विनत जितना ही
दुष्ट कौरवों ने तुमको
कायर समझा उतना ही।

अत्याचार सहन करने का
कुफल यही होता है
पौरुष का आतंक मनुज
कोमल होकर खोता है।

क्षमा शोभती उस भुजंग को
जिसके पास गरल हो
उसको क्या जो दंतहीन
विषरहित, विनीत, सरल हो ।

तीन दिवस तक पंथ मांगते
रघुपति सिन्धु किनारे,
बैठे पढ़ते रहे छन्द
अनुनय के प्यारे-प्यारे ।

उत्तर में जब एक नाद भी
उठा नहीं सागर से
उठी अधीर धधक पौरुष की
आग राम के शर से ।

सिन्धु देह धर त्राहि-त्राहि
करता आ गिरा शरण में
चरण पूज दासता ग्रहण की
बँधा मूढ़ बन्धन में।

सच पूछो , तो शर में ही
बसती है दीप्ति विनय की
सन्धि-वचन संपूज्य उसी का
जिसमें शक्ति विजय की ।

सहनशीलता, क्षमा, दया को
तभी पूजता जग है
बल का दर्प चमकता उसके
पीछे जब जगमग है।

खड़ा हिमालय बता रहा है

सोहन लाल द्विवेदी
जन्म 22 फरवरी 1906, बिन्दकी, फतेहपुर , उत्तर प्रदेश

खड़ा हिमालय बता रहा है
डरो न आंधी पानी में।
खड़े रहो तुम अविचल हो कर
सब संकट तूफानी में।

डिगो ना अपने प्राण से, तो तुम
सब कुछ पा सकते हो प्यारे,
तुम भी ऊँचे उठ सकते हो,
छू सकते हो नभ के तारे।

अचल रहा जो अपने पथ पर
लाख मुसीबत आने में,
मिली सफलता जग में उसको,
जीने में मर जाने में।

बढ़े चलो, बढ़े चलो


सोहनलाल द्विवेदी
जन्म 22 फरवरी 1906, बिन्दकी, फतेहपुर , उत्तर प्रदेश
 
न हाथ एक शस्त्र हो,
न हाथ एक अस्त्र हो,
न अन्न वीर वस्त्र हो,
हटो नहीं, डरो नहीं, बढ़े चलो, बढ़े चलो ।

रहे समक्ष हिम-शिखर,
तुम्हारा प्रण उठे निखर,
भले ही जाए जन बिखर,
रुको नहीं, झुको नहीं, बढ़े चलो, बढ़े चलो ।

घटा घिरी अटूट हो,
अधर में कालकूट हो,
वही सुधा का घूंट हो,
जिये चलो, मरे चलो, बढ़े चलो, बढ़े चलो ।

गगन उगलता आग हो,
छिड़ा मरण का राग हो,
लहू का अपने फाग हो,
अड़ो वहीं, गड़ो वहीं, बढ़े चलो, बढ़े चलो ।

चलो नई मिसाल हो,
जलो नई मशाल हो,
बढो़ नया कमाल हो,
झुको नही, रूको नही, बढ़े चलो, बढ़े चलो ।

अशेष रक्त तोल दो,
स्वतंत्रता का मोल दो,
कड़ी युगों की खोल दो,
डरो नही, मरो नहीं, बढ़े चलो, बढ़े चलो ।

नर हो न निराश करो मन को

Maithilisharan Guptमैथिलीशरण गुप्त
जन्म: अगस्त 3, १८८६, झाँसी, उत्तर प्रदेश 

नर हो न निराश करो मन को
कुछ काम करो कुछ काम करो
जग में रहके निज नाम करो
यह जन्म हुआ किस अर्थ अहो
समझो जिसमें यह व्यर्थ न हो
कुछ तो उपयुक्त करो तन को
नर हो न निराश करो मन को ।

संभलो कि सुयोग न जाए चला
कब व्यर्थ हुआ सदुपाय भला
समझो जग को न निरा सपना
पथ आप प्रशस्त करो अपना
अखिलेश्वर है अवलम्बन को
नर हो न निराश करो मन को ।

जब प्राप्त तुम्हें सब तत्त्व यहाँ
फिर जा सकता वह सत्त्व कहाँ
तुम स्वत्त्व सुधा रस पान करो
उठके अमरत्व विधान करो
दवरूप रहो भव कानन को
नर हो न निराश करो मन को ।

निज गौरव का नित ज्ञान रहे
हम भी कुछ हैं यह ध्यान रहे
सब जाय अभी पर मान रहे
मरणोत्तर गुंजित गान रहे
कुछ हो न तजो निज साधन को
नर हो न निराश करो मन को ।