April 28, 2009

हम-तुम


जीवन कभी सुना न हो,
कुछ मैं कहूँ कुछ तुम कहो।

तुमने मुझे अपना लिया,
यह तो बड़ा अच्छा किया,
जिस सत्य से मैं दूर था,
वह पास तुमने ला दिया,

अब ज़िन्दगी की धार में
कुछ मैं बहूँ कुछ तुम बहो।

जिसका ह्रदय सुंदर नहीं,
मेरे लिए पत्थर वाही,
मुझको नयी गति चाहिए,
जैसे मिले वैसे सही।

मेरी प्रगति की साँस में
कुछ तुम रहो कुछ मैं रहूँ।

मुझको बड़ा सा काम दो,
चाहे न कुछ आराम दो
लेकिन जहाँ थक कर गिरूँ
मुझको वहीं तुम थाम लो ।

गिरते हुए इंसान को
कुछ मैं गहूं कुछ तुम गहो।

संसार मेरा मीत है,
सौन्दर्य मेरा गीत है,
मैंने अभी तक समझा नही,
क्या हार है क्या जीत है,

दुःख-सुख मुझे जो भी मिले,
कुछ मैं सहूँ कुछ तुम सहो।

रामनाथ अवस्थी

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