वीरेन्द्र
अनजाने चेहरे ,बुझते रिश्ते ,कुछ टीसते ज़ख्म ...
फिर शर्द स्याह रात , और फिर वही हम हैं...
अजीब सी मंजिलें ,गुजरी मीठी यादें,कुछ गिले शिकवे.
फिर उस बेवफा का शहर, और फिर वही हम हैं..
फिर शर्द स्याह रात , और फिर वही हम हैं...
अजीब सी मंजिलें ,गुजरी मीठी यादें,कुछ गिले शिकवे.
फिर उस बेवफा का शहर, और फिर वही हम हैं..