February 06, 2011

फिर वही हम हैं..


वीरेन्द्र

अनजाने चेहरे ,बुझते रिश्ते ,कुछ टीसते ज़ख्म ...
फिर शर्द स्याह रात , और फिर वही हम हैं...
अजीब सी मंजिलें ,गुजरी मीठी यादें,कुछ गिले शिकवे.
फिर उस बेवफा का शहर, और फिर वही हम हैं..

कुछ यूँ होता कि...

वीरेन्द्र

बहार आती.गुलों में रंग भरते ,तुम आते
और फिर इसका नाम प्यार होता
कुछ यूँ होता की तुम्हें प्यार होता

जज्बातों का क़त्ल होता,दिल टूटते,बेवफाई होती..
...और फिर इसका नाम प्यार होता
कुछ यूँ होता की तुम्हें प्यार होता

चाहत बदलती,रिश्ते बदलते,कोई गुनाहगार होता..
और फिर इसका नाम प्यार होता
कुछ यूँ होता की तुम्हें प्यार होता

क़यामत आती,तेरी एक शाम हमारे नाम होती.
और फिर इसका नाम प्यार होता..
कुछ यूँ होता की तुम्हें प्यार होता..

अब तेरी बारी है..

वीरेन्द्र
सिलसिला इंतज़ार का अभी बाकी है..
दूर तक तन्हाई बदस्तूर ज़ारी है..

बहुत कम मिलता हूँ लोगों से अब ..
पता नहीं कब किसकी किससे यारी है...

जिन लम्हों को जिया है बरसों इंतज़ार में..
वो कतरा कतरा सदियों पे भारी है..
अब तो अपनी कश्ती भी खुली छोड़ दी है..
ले समंदर अब तेरी बारी है॥

अन्य कवितायेँ

यूँकि यहाँ पर शामिल कवितायेँ नामचीन कवियों की है, लेकिन अब कुछ अन्य कवितायेँ शामिल कर रहा हूँ जो मुझे बहुत पसंद आया है और आशा है आप लोग भी सराहे बगैर नहीं रह पाएंगे...