सिंहासन हिल उठे, राजवंशों ने भृकुटि तानी थी
बूढे भारत में भी आयी, फिर से नयी जवानी थी
गुमी हुई आजादी की, कीमत सबने पहचानी थी
दुर फिरंगी को करने की, सबने मन में ठानी थी
चमक उठी सन सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी
बुन्देले हरबोलों के मुख, हमने सुनी कहानी थी
खुब लड़ी मर्दानी, वह तो झासी वाली रानी थी
कानपुर के नाना की, मुंह्बोली बहन 'छबीली' थी
लक्ष्मीबाई नाम पिता की, वह संतान अकेली थी
नाना के संग पढती थी वह् नाना के संग खेली थी
बरछी ढाल कृपाण कटारी, उसकी यही सहेली थी
वीर शिवाजी की गाथायें, उसको याद जबानी थी
बुन्देले हरबोलों के मुख, हमने सुनी कहानी थी
खुब लड़ी मर्दानी, वह तो झासी वाली रानी थी
गुमी हुई आजादी की, कीमत सबने पहचानी थी
दुर फिरंगी को करने की, सबने मन में ठानी थी
चमक उठी सन सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी
बुन्देले हरबोलों के मुख, हमने सुनी कहानी थी
खुब लड़ी मर्दानी, वह तो झासी वाली रानी थी
कानपुर के नाना की, मुंह्बोली बहन 'छबीली' थी
लक्ष्मीबाई नाम पिता की, वह संतान अकेली थी
नाना के संग पढती थी वह् नाना के संग खेली थी
बरछी ढाल कृपाण कटारी, उसकी यही सहेली थी
वीर शिवाजी की गाथायें, उसको याद जबानी थी
बुन्देले हरबोलों के मुख, हमने सुनी कहानी थी
खुब लड़ी मर्दानी, वह तो झासी वाली रानी थी
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