May 31, 2008
सरफरोशी की तमन्ना..
सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है,
देखना है जोर कितना बाजुए कातिल में है ।
करता नहीं क्यों दुसरा कुछ बातचीत,
देखता हूँ मैं जिसे वो चुप तेरी महफिल मैं है ।
रहबर राहे मौहब्बत रह न जाना राह में
लज्जत-ऐ-सेहरा नवर्दी दूरिये-मंजिल में है ।
यों खड़ा मौकतल में कातिल कह रहा है बार-बार
क्या तमन्ना-ए-शहादत भी किसी के दिल में है ।
ऐ शहीदे-मुल्को-मिल्लत मैं तेरे ऊपर निसार
अब तेरी हिम्मत का चर्चा ग़ैर की महफिल में है ।
वक्त आने दे बता देंगे तुझे ऐ आसमां,
हम अभी से क्या बतायें क्या हमारे दिल में है ।
खींच कर लाई है सब को कत्ल होने की उम्मींद,
आशिकों का जमघट आज कूंचे-ऐ-कातिल में है ।
सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है,
देखना है जोर कितना बाजुए कातिल में है ।
है लिये हथियार दुश्मन ताक मे बैठा उधर
और हम तैय्यार हैं सीना लिये अपना इधर
खून से खेलेंगे होली गर वतन मुश्किल में है
सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है।
हाथ जिनमें हो जुनून कटते नही तलवार से
सर जो उठ जाते हैं वो झुकते नहीं ललकार से
और भडकेगा जो शोला सा हमारे दिल में है
सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है ।
हम तो घर से निकले ही थे बांधकर सर पे कफ़न
जान हथेली में लिये लो बढ चले हैं ये कदम
जिंदगी तो अपनी मेहमान मौत की महफ़िल मैं है
सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है ।
दिल मे तूफानों की टोली और नसों में इन्कलाब
होश दुश्मन के उडा देंगे हमे रोको न आज
दूर रह पाये जो हमसे दम कहाँ मंजिल मे है
सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
..वह तो झांसी वाली रानी थी
गुमी हुई आजादी की, कीमत सबने पहचानी थी
दुर फिरंगी को करने की, सबने मन में ठानी थी
चमक उठी सन सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी
बुन्देले हरबोलों के मुख, हमने सुनी कहानी थी
खुब लड़ी मर्दानी, वह तो झासी वाली रानी थी
कानपुर के नाना की, मुंह्बोली बहन 'छबीली' थी
लक्ष्मीबाई नाम पिता की, वह संतान अकेली थी
नाना के संग पढती थी वह् नाना के संग खेली थी
बरछी ढाल कृपाण कटारी, उसकी यही सहेली थी
वीर शिवाजी की गाथायें, उसको याद जबानी थी
बुन्देले हरबोलों के मुख, हमने सुनी कहानी थी
खुब लड़ी मर्दानी, वह तो झासी वाली रानी थी
May 30, 2008
आ रही रवि की सवारी
आ रही रवि की सवारी
नव किरण का रथ सजा है,
कलि कुसुम से पथ सजा है
बादलों में अनुचरों ने स्वर्ण की पोषाक धारी
आ रही रवि की सवारी
विहग बन्दी और चारण
गा रहे सब कीर्ति गायन
छोड़ कर मैदान भागी, तारकों की फौज सारी
आ रही रवि की सवारी
चाहता उछलूं विजय कह्
पर ठिठकता देख कर यह
रात का राजा खड़ा है, राह में बन कर भिखारी
आ रही रवि की सवारी
May 29, 2008
हिम्मत करने वालों की..
सोहनलाल द्विवेदी(22 फरवरी 1906 - 1 मार्च 1988) फतेहपुर, उत्तर प्रदेशहिम्मत करने वालों की कभी हार नही होती लहरों से डर कर नौका पार नही होती, नन्ही चीटी जब दाना ले कर चलती है चढती दीवारॉ पर सौ बार फिसलती है, मन का विश्वास रगों में साहस भरता है चढ कर गिरना गिरकर चढना न अखरता है, आखिर उसकी मेहनत बेकार नही होती, हिम्मत करने वालों की कभी हार नही होती. डुबकियां सिन्धु में गोताखोर लगाता है, जा जाकर खाली हाथ लौट आता है, मिलते न सहज मोती गहरे पानी में, बढता दुना उत्साह इसी हैरानी में, मुट्ठी उसकी खाली हर बार नही होती, हिम्मत करने वालों की कभी हार नही होती. असफलता एक चुनौती है,स्वीकार करो, क्या कमी रह गयी देखो और सुधार करो, जब तक न सफल हो नीन्द चैन त्यागो तुम, संघर्ष का मैदान छोड़ मत भागो तुम, कुछ किये बिना ही जय जयकार नही होती, हिम्मत करने वालों की कभी हार नही होती.
सबसे खतरनाक होता है..
सबसे खतरनाक होता है मुर्दा शन्ति से भर जाना,
ना होना तड़प का, सब कुछ सहन कर जाना,
घर से निकलना काम पर और काम से लौट कर घर आना,
सबसे खतरनाक होता है, हमारे सपनों का मर जाना
May 28, 2008
रश्मिरथी, तृतीय सर्ग
मुझ-से मनुष्य जो होते हैं, कंचन का भार न ढोते हैं
पाते हैं धन बिखराने को, लाते हैं रतन लुटाने को
जग से न कभी कुछ लेते हैं, दान ही हृदय का देते हैं
प्रासादों के कनकाभ शिखर, होते कबुतरों के ही घर,
महलों में गरूड़ न होता है, कंचन पर कभी न सोता है
बसता वह कहीं पहाड़ॉ में, शैलॉ की फटी दरारॉ में
होकर समृधि-सुख के अधीन, मानव होता नित तपः क्षीण
सत्ता किरीट,मणिमय आसन, करते मनुष्य का तेज हरण
नर विभव हेतु ललचाता है, पर वही मनुष्य को खाता है
चॉंदनी,पुष्पछाया में पल, नर भले बनें सुमधुर,कोमल,
पर, अमृत क्लेश का पिये बिना, आतप अंधड़ में जिये बिना,
वह पुरूष नहीं कहला सकता, विघ्नों को नहीं हिला सकता
उड़ते जो झंझावातों में, पीते जो वारि प्रपातों में,
सारा आकाश अयन जिनका, विषधर भुजञ्ग भोजन जिनका,
वे ही फणिबन्ध छुड़ातें हैं, धरती का हृदय जुड़ाते हैं
हिमाद्रि तुंग श्रृंग से..
हिमाद्रि तुंग श्रृंग से प्रबुद्ध शुद्ध भारती
स्वयंप्रभा समुज्जवला स्वतंत्रता पुकारती
अमर्त्य वीर पुत्र हो, दृढ़-प्रतिज्ञ सोच लो
प्रशस्त पुण्य पंथ हैं - बढ़े चलो बढ़े चलो
असंख्य कीर्ति-रश्मियाँ विकीर्ण दिव्य दाह-सी
सपूत मातृभूमि के रुको न शूर साहसी
अराति सैन्य सिंधु में, सुबाड़वाग्नि से जलो
प्रवीर हो जयी बनो - बढ़े चलो बढ़े चलो
रश्मिरथी
गुण बड़े एक से एक प्रखर, हैं छिपे मानवों के भीतर
मेंहन्दी में जैसे लाली हो, वर्त्तिका बीच उजियाली हो
बत्ती जो नहीं जलाता है, रौशनी नहीं वह पाता है
पीसा जाता जब इक्षु - दण्ड, झरती रस की धारा अखण्ड,
मेंहन्दी जब सहती है प्रहार, बनती ललनाओं का सिंगार
जब फूल पिरोये जाते हैं, हम उनको गले लगाते हैं